Maa Baglamukhi Yantra

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Yantra Image

Etymology and Meaning

According to ancient scriptures, the word “Yantra” is derived from the Sanskrit root “Yuj”, meaning union, integration, method, connection, or alignment. The term also conveys meanings such as effort, discipline, contemplation, technique, devotion, and concentration.
Etymologically, “Yantra” is believed to originate from the Sanskrit word “Yam” (to restrain or hold) and “Traan” (to liberate from bondage). Thus, a Yantra is not merely a mystical diagram - t is a sacred tool to transcend the cycles of birth and rebirth, leading to ultimate liberation.
The use of Yantras dates back at least 5,000 years, and they evolved across six historical phases of Yoga -Pre-Classical, Epic, Classical, Post-Classical, and Modern Yoga.

What is a Yantra?

A Yantra is the symbolic embodiment of divine energy. It may be inscribed or drawn on various surfaces such as gold, silver, copper, crystal, birch bark, bone, hide, or sacred stones like Shaligram. It combines lines, points (bindus), secret letters, mantras, sacred symbols, and colors—all arranged with extreme precision.
Crafting a Yantra demands purity, accuracy, discipline, and meditative focus, making it not just a spiritual instrument but also a practice of inner alignment. From the selection of the day and time to the ink, surface, and method, every aspect must be meticulously balanced.
In both Hindu and Tibetan Tantric traditions, Yantras are powerful meditative objects that help the seeker attain deep states of spiritual focus. When used with the correct mantra, a Yantra can elevate the practitioner to higher realms of consciousness and self-realization.

Maa Baglamukhi & The Yantra Tradition

In Hindu belief, Devi Baglamukhi is said to reside within Her Yantra. The Baglamukhi Mahayantra is one of the most potent tools for subduing enemies, resolving legal battles, and overcoming inner and external obstacles.
This sacred Yantra contains the divine vibrations of Maa Baglamukhi and is often energized during rare and powerful astrological windows—particularly when Mars is in a strong celestial position. Rituals involve yellow attire, yellow flowers, turmeric-based ink, and precise invocation mantras, typically conducted at night, especially on Mahashivratri, Holi, and Diwali.

Energization and Worship Process

Once crafted, the Yantra must undergo ritual purification (shodhan) and energization (pran pratishtha). It is then bathed, placed on a golden pedestal, and worshipped using eight sacred fragrances, kund or udabhav flowers, and recitation of powerful mantras.
Before wearing or installing the Yantra:

  • ♦ It must be etched only on copper, not on paper for lasting potency.
  • ♦ Enclosed in a silver or gold thread, worn around the neck, or placed on a sacred wooden platform in the home temple.
  • ♦ Worshipped daily with yellow flowers, incense, and recitation of the Beeja mantra.

Beeja Mantra:
|| Om Hreem Baglamukhi Sarv Dushtanam Vacham Mukham Padam Stambhaya Jivha Kīlaya Buddhim Vināshaya Hreem Om Swaha ||

Benefits of the Baglamukhi Mahayantra

  • ♦ Victory in court cases and legal disputes
  • ♦ Protection from negative energies and psychic attacks
  • ♦ Success in competitions, business challenges, and enemy confrontations
  • ♦ Shielding from accidents, surgeries, and untimely injuries
  • ♦ Mental clarity and spiritual elevation
  • ♦ Power to silence slander and ill-intentioned speech

It is said that the Baglamukhi Yantra brings visible, real-world results, and has been validated by thousands of personal experiences.

Installation & Daily Worship Guidelines

  1. Begin by purifying yourself with a bath and maintaining a calm, focused mind.
  2. Choose an east-facing direction for installation and sit on a clean yellow mat.
  3. Light incense or a diya.
  4. Offer a fresh flower and fruit on the altar.
  5. Place the Yantra alongside the image of your deity or Guru.
  6. Sprinkle water on yourself and the Yantra as an act of internal and external cleansing.
  7. Chant the mantra: “Om Hreem Baglamukhi Namah” (21 times)
  8. Close your eyes, focus your intention, and pray with sincerity for the fulfillment of your desires.

The Baglamukhi Mahayantra is not a superstition—it is a profound spiritual technology. It embodies Stambhan Shakti—the power to arrest negativity, destructive speech, and inner chaos. With devotion, discipline, and right usage, the Yantra becomes a divine ally on the path of victory, peace, and liberation.

शास्त्रों के अनुसार, यंत्र शब्द युज शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है योग, संयोजन, उपयोग, मिलन, बाँधना, सम्मिलित करना या एकाकार। यंत्र के अन्य अर्थ भी हैं जैसे परिश्रम, प्रयास, उत्साह, प्रयत्न, ध्यान, विचारों का अनुप्रयोग या एकाग्रता, अमूर्त चिंतन, मंथन, आचरण, विधि, साधन, युक्ति, तरीका, उपयोग, प्रदर्शन, संयोजन, संबंध, संपर्क और साक्षात्कार। माना जाता है कि यंत्र की उत्पत्ति संस्कृत शब्द "यम" से हुई है, जिसका अर्थ है किसी वस्तु या अवधारणा के मूल को प्रश्रय देना या धारण करना और "त्राण" का अर्थ है बंधन से मुक्ति। इस प्रकार यंत्र का अर्थ है जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति। यंत्र की उत्पत्ति कम से कम 5000 वर्ष पूर्व हुई थी। यंत्र योग के छह कालखण्डों में व्यापक स्तर पर विकसित हुआ है- आद्य, पूर्व-शास्त्रीय, महाकाव्य, शास्त्रीय, उत्तर-शास्त्रीय और आधुनिक योग।

यंत्र देवी-देवताओं का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व है। यंत्रों को सोने, चांदी, तांबे, स्फटिक, सन्टी, हड्डी, खाल और शालिग्राम जैसे विभिन्न पदार्थों पर बनाया, उकेरा या चित्रित किया जा सकता है। यंत्र बनाते समय रेखाओं, बिंदुओं, गुप्त अक्षरों, गुप्त मंत्र, रंगों, आकृतियों, चित्रों आदि का उपयोग किया जाता है। यंत्रों के निर्माण और चित्रण में सटीकता, यथार्थता, अनुशासन, एकाग्रता, साफ-सफाई और धैर्य की आवश्यकता होती है। अतः यह व्यक्ति को एकाग्र, ओजस्वी और ऊर्जावान बनाए रखता है। उद्देश्य के अनुसार इसका निर्माण, बैठने का समय, स्याही, कलम, स्थान दिन और शुभ मुहूर्त आदि संतुलन की आवश्यकता होती है। हिंदू और तिब्बती तांत्रिक चिकित्सा में यंत्र का उपयोग एकाग्रता की गहन अवस्था प्राप्त करने के लिए प्रतीकात्मक वस्तु के रूप में बड़े पैमाने पर किया जाता है। यंत्र का उपयोग करते समय उचित मंत्र का जाप भी करना चाहिए। इससे व्यक्ति के आध्यत्मिक स्तर को परम उच्चता प्राप्त होती है। जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर की शक्ति का ज्ञान होगा। इससे व्यक्ति को जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलेगी तथा शाश्वत अमरता प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।

हिंदू धर्म में माना जाता है कि देवी बगलामुखी यंत्र में निवास करती हैं। यंत्र को धार्मिक कार्यों के लिए बहुत शुभ माना जाता है। यंत्र देवताओं के सामने हाथ जोड़कर प्रणाम करने का भी प्रतीक है। यंत्र हर धार्मिक प्रक्रिया, मंदिर और अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक संकेतों का प्रतीक है। यंत्र के उपयोग से पहले इसे शुद्ध और सक्रिय किया जाना चाहिए। यंत्र बनाने के बाद इसे स्नान कराकर स्वर्ण आसन पर रखना चाहिए और फिर कुंद, गोला या उदभव पुष्प या आठ सुगंधियों से स्नान करना चाहिए। चूंकि यंत्र भगवान का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए उचित मंत्र का जाप करके इसकी पूजा करनी चाहिए। इससे यंत्र में भगवान की दिव्य शक्ति का आह्वान होता है। यह सम्पूर्ण अनुष्ठान रात्रि में किया जाना चाहिए। महाशिवरात्रि, होली और दिवाली की रातों में सक्रिय किए गए यंत्र सबसे प्रभावी और शक्तिशाली होते हैं। यंत्र को धारण करने से पूर्व सबसे पहले इसे आठ कौल सुगंधियों से बनाना चाहिए और इस पर मुख्य मंत्र लिखना चाहिए। यंत्र के बाहरी हिस्से पर कवच और 1000 नाम लिखे जाने चाहिए। यंत्र में देवी की शक्ति का आह्वान करने के उपरांत इसे धातु के पात्र में रखकर सोने या चांदी के धागे में पिरोया जाना चाहिए और फिर अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए पहना जा सकता है। कागज पर यंत्र बनाते समय लाल, नारंगी, पीला या इनमें से किसी एक रंग का प्रयोग करना चाहिए। सुबह जल्दी उठकर यंत्र के सामने धूप या दीप जलाकर और प्रसाद चढ़ाकर इसकी पूजा करनी चाहिए।

बगलामुखी महायंत्र का उपयोग शत्रुओं पर शक्ति प्रभुत्व के लिए किया जाता है। बगलामुखी यंत्र शत्रु विजय, कानूनी मुकदमों, अदालती मामलों, वैमनस्यता, प्रतियोगिताओं में सफलता के लिए बहुत प्रभावी और उपयोगी है। इस शक्तिशाली यंत्र की अधिष्ठात्री मां बगलामुखी हैं। इस यंत्र में माता बगलामुखी की दिव्य शक्तियों तिरोहित होती हैं। बगलामुखी यंत्र शत्रुओं पर विजय, मुकदमों, झगड़ों और प्रतियोगिताओं में सफलता हेतु चमत्कारी लाभ प्रदान करता है। इस यंत्र के अनुष्ठान का एक विशेष मुहूर्त होता है। जब मंगल ग्रह पूर्ण बली अवस्था में होता है तभी इस यंत्र में देवी का आह्वान किया जाता है। इस दुर्लभ अनुष्ठान में पीले कपड़े धारण कर, पीले आसन पर बैठकर, पीले पुष्पों व पीले मोतियों का उपयोग किया जाता है।

इस यंत्र को मूल रूप से हल्दी, धतूरे के फूलों के रस या पीले आभूषण से निर्मित किया जाता है। अधिकतम लाभ के उद्देश्य से इसकी विधिवत पूजा की जाती है। यंत्र को केवल तांबे की प्लेट पर उकेरा जाता है। बगलामुखी यंत्र आत्माओं और यक्षिणी के बुरे प्रभावों को दूर करने के लिए बहुत प्रभावी है। यह द्यूत कर्म में विजय हेतु भी उपयोगी होता है। यह शत्रु शमन, मुकदमों, झगड़ों और प्रतियोगिताओं में सफलता के लिए बहुत शक्तिशाली और उपयोगी यंत्र है।

बगलामुखी यंत्र शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी उपाय है। यह यंत्र चोट, घाव, ऑपरेशन और दुर्घटनाओं से भी सुरक्षा प्रदान करता है। बगलामुखी यंत्र को तांबे, कांस्य, चांदी या सोने पर लिखा या उकेरा जाना चाहिए। इसे गले में पहना जाता है और पूजा घर में भी रखा जाता है। इसकी पूजा पीले मोतियों, माला और पीले वस्त्र से बीज मंत्र के माध्यम से प्रतिदिन की जाती है।

!! ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानं वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वा किलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा!!

इस यंत्र का प्रयोग न्यायालय में करने से हर बार सफलता मिलती है। यह इस यंत्र का प्रभाव सटीक व दैनिक जीवन में स्पष्ट दृश्यमान है। इसे कई लोगों ने अपने जीवन में अनुभूति, अनुभव के आधार पर प्रमाणित किया है। प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत यंत्र को पूजा स्थल या घर के मंदिर में लकड़ी के चौक पर स्थापित किया जाना चाहिए। जिस पर पीला आसन रखा जाना चाहिए। स्नान के बाद पूजा की जानी चाहिए। दाहिने हाथ में जल लेकर बगलामुखी बीज मंत्र का जाप करें और यंत्र पर जल अर्पित करने से आपकी भी मनोकामनाएं पूरी होंगी।

यंत्र दिशानिर्देश

यह यंत्र या ताबीज या दिव्य आकृति आमतौर पर तांबे में बनी होती है। यह एक तांत्रिक मार्ग है, जिसे सबसे सरल और सबसे छोटा माना जाता है। इसके माध्यम से कोई भी अपनी इच्छाओं व मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकता है। ऐसा कहा जाता है कि यंत्रों में 'देवता' निवास करते हैं और यंत्रों की पूजा या आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। ग्रहों के बुरे प्रभावों को दूर कर सकता है। साथ ही सकारात्मक प्रभावों में संवर्धन कर सकता है।

स्थापना हेतु प्रक्रिया

  1. सबसे पहले अपने शरीर को स्नान इत्यादि द्वारा शुद्ध करें। तदोपरांत पवित्र और सकारात्मक मानसिकता के साथ प्रारंभ करें
  2. धरती पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके एक स्थान खोजें, जहां आप सुगमता से आसन लगा सकें।
  3. धूपबत्ती या दीया जलाएं (इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने धूपबत्ती या दीया जलाते हैं)।
  4. वेदी पर एक ताज़ा पुष्प और एक ताज़ा फल रखें।
  5. यंत्र को खोलें और इसे यंत्र के देवता और अपने इष्ट देव की छवि के साथ रखें।
  6. किसी भी पेड़ के पत्ते पर जल लेकर अपने ऊपर छिड़कें तथा उसके बाद यंत्र पर अर्पित करें।
  7. फिर अपनी आत्मा को शुद्ध करें और अपने आप को पूरी तरह से भगवान की भक्ति में समर्पित कर दें।
  8. तदोपरांत निम्न मंत्र का 21 बार जप करें:पित कर दें।

ॐ ह्रीं बगला मुखी नमः

  • अपनी आंखें बंद करें और इच्छाओं की पूर्ति के लिए भगवान पर ध्यान केंद्रित करें। अब पूरी ईमानदारी के साथ अपनी भाषा में भगवान से अपने जीवन की इच्छित मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें।